संस्थान के संरक्षक वरिष्ठ अधिवक्ता श्री प्रेमकृष्ण शर्मा ने वर्तमान कार्यक्रम की भूमिका रखी और सही मायने में आम जनता की सुनवाई न होने पर कहा की हमने अपनी संवेदनहीन न्याय व्यवस्था को ब्रिटिश शासन काल से प्राप्त किया और उसी को आगे बढ़ाया जो स्वयं दोषपूर्ण थी। इसपर कार्यपालिका जो संवैधानिक संस्थाओं का उपयोग अपने निजी स्वार्थ के लिए करती हैं जिससे आमजन को न्याय मिलना और भी कठिन हो जाता है। उन्होंने जनपक्षीय न्यायिक सुधारों और न्यायधीशों की भारी कमी को भरने पर जोर दिया।
राजस्थान बार एसोसिएशन के अध्यक्ष महेन्द्र शांडिल्य ने कहा कि अधिवक्ताओं और जजों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, और जो परिवर्तन हम समाज में देखना चाहते हैं उसकी शुरुवात स्वयं से करने की आवश्यकता बताई।
आज कितने ही लोग कोर्ट कार्रवाइयों में खर्च न उठा पाने के कारण सालों साल बिना आरोप साबित हुए भी सजा काट रहे होते हैं। आज न्याय कम, लोक अदालतों के जरिये निपटारा ज्यादा होता है। आज तो कानून से परे बुलडोजर चलाने की नयी कुनीति चल पड़ी हैं और दुर्भाग्यवश जनता के कुछ तबके इस बर्बरता और कानून से इतर कृत्यों को समर्थन देकर वाहवाही कर रहे हैं। संवैधानिक संस्थाओं को लोकतंत्र हीन बना सत्ता प्रतिष्ठान की इच्छा से संचालित करने और वैज्ञानिक सोच के खात्मे के साथ पाखंड और साम्प्रदायिक भावनाओं को बढ़ावा देकर धर्म-निरपेक्ष मूल्यों की बलि चढ़ाई जा रही है। आमजन को आगे आकर न्यायालय को उसके कर्तव्यों और तानाशाही की ओर बढ़ती सत्ताशाहों की तानाशाही के खिलाफ उठ खड़ा होना होगा। निःशक्तजन राज्य आयुक्त व राज्य मंत्री श्री उमाशंकर शर्मा ने कहा कि युवाओं को समाज में आगे आकर महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। संस्थान के सचिव सचिन शर्मा ने बताया कि आगामी महीनों में ऐसे और कार्यक्रम करवाए जायेंगे। संस्थान के अध्यक्ष कैलाश चंद कुम्भकार और उपाध्यक्ष अधिवक्ता देव कृष्णा पुरोहित ने संस्थान की 1995 से अब तक की यात्रा और उपलब्धियों पर प्रकाश डाला।
कैमरामैन : पी.सी.योगी (बैस्ट रिपोर्टर न्यूज)