निर्देशक खुशवेन्द्र सिंह अनुसार फिल्म मेकिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं राजस्थानी भाषा और संस्कृति को लेकर कुछ कहानियों पर काम कर रहा था, जिनके सिलसिले में मुम्बई में काफी निर्माताओं को कहानियां सुनाई, लेकिन किसी ने रुचि नहीं दिखाई। यहां राजस्थान में अभिनेता श्रवण सागर को तीन कहानियां सुनाई, जिनमें से दो कहानियों में बजट ज्यादा था लेकिन तीसरी कहानी केसर कस्तूरी उन्हें पसंद आई और कुछ ऐसी ही सोच निर्माताओं के दिमाग में भी थी। इसलिए केसर कस्तूरी परदे पर आने जा रही है। केसर शब्द राजस्थान के केसरिया शब्द से प्रेरित है, जबकि कस्तूरी के पीछे प्रेरणा कस्तूरी मृग रही। राजस्थान में भी कृष्ण मृग हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। इसलिए कहीं ना कहीं केसर कस्तूरी नाम फिल्म के लिए सही प्रतीत हो रहा था।
अभिनेता श्रवण सागर के अनुसार लॉकडाउन के समय में फिल्म बनाने के लिए काफी अलग अलग कहानियां आईं, लेकिन कोई कहानी इतनी अच्छी नहीं लगी। तब खुशवेन्द्र मेरे पास केसर कस्तूरी और डाबड़ा कहानी लेकर आए। केसर कस्तूरी कहानी दिल को छू गई। ऐसी कहानी पर मैंने काम भी नहीं किया था। अभी तक मेरी ज्यादातर फिल्में एक्शन फिल्में रही हैं। केसर कस्तूरी जैसी घुमक्कड़ी आधारित प्रेम कहानी राजस्थान में कभी बनी भी नहीं है। कहानी को लेकर काफी हद तक स्पष्टता थी कि क्या होना है और कैसे होना है। इसलिए मेरे पास कहानी को ना करने का कोई कारण नहीं था।
निर्माता विकास सिरोही के अनुसार राजस्थान में हम एक कहानी पर फिल्म बनाने को सोच रहे थे, कि तभी सीकर में किसी मित्र के साथ पी.के. सोनी जी से मुलाकात हुई। उन्होंने एक कहानी की रूपरेखा बताई। कहानी में एक लड़का है, जो कि अपनी नौकरी की तैयारी कर रहा है। लेकिन नौकरी नहीं मिलने के कारण वो हताश हो जाता है, तो अपनी निराशा को निकालने के लिए घूमने चला जाता है। सोचा गया कि क्यों ना एक घुमक्कड़ युवा और राजस्थानी संस्कृति को लेकर एक फिल्म बनाई जाए। वैसे भी राजस्थान भारत में पर्यटन के तौर पर दूसरे स्थान पर आता है, तो क्यों ना इसे पहले स्थान पर लाया जाए। वैसे भी विदेशी लोग भी यहां आकर फिल्में शूट करते हैं, तो हम क्यों ना अपनी संस्कृति को अच्छे तरीके से दिखाएं। इसी सोच के साथ कहानी पर सब लोग मिलते गये और कारवां बनता गया।